बहुत ही सटीक निशाना लगाया है. बेशक आज के सिनेमा में निम्न स्तरीय चीजें धड़ल्ले से बिक रही हैं. लेकिन इसे सिनेमा का या संस्कृति का पतन नहीं कहा जा सकता. किसी भी जगह की संस्कृति तभी मजबूत होती है जब उसमें विविधता हो. मैंने कल ही युट्यूब पे एक मूवी देखी 'रोड टू संगम' . और मुझे ये एहसास हुआ ऐसी उच्च गुणवत्ता की फिल्म बनाने का साहस जो आज के सिनेमा में है वो पहले कभी नहीं था. अब भारत में केवल एक तरह के दर्शक नहीं हैं, एक ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है जो अच्छी फिल्मों का इन्तेजार करता है.. और थोड़े थोड़े समय पे ऐसी फिल्मे बनती भी हैं. ये बात सच के हमारे देखने में वो पीढ़ी आती है जो हनी सिंह को भगवान् मानती है लेकिन ये पीढ़ी पुरे भारत का सच नहीं है, वर्ना मिल्खा सिंह जैसी फिल्म बनाने की हिम्मत कोई नहीं करता.
बहुत ही सटीक निशाना लगाया है.
ReplyDeleteबेशक आज के सिनेमा में निम्न स्तरीय चीजें धड़ल्ले से बिक रही हैं. लेकिन इसे सिनेमा का या संस्कृति का पतन नहीं कहा जा सकता. किसी भी जगह की संस्कृति तभी मजबूत होती है जब उसमें विविधता हो.
मैंने कल ही युट्यूब पे एक मूवी देखी 'रोड टू संगम' . और मुझे ये एहसास हुआ ऐसी उच्च गुणवत्ता की फिल्म बनाने का साहस जो आज के सिनेमा में है वो पहले कभी नहीं था.
अब भारत में केवल एक तरह के दर्शक नहीं हैं, एक ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है जो अच्छी फिल्मों का इन्तेजार करता है.. और थोड़े थोड़े समय पे ऐसी फिल्मे बनती भी हैं.
ये बात सच के हमारे देखने में वो पीढ़ी आती है जो हनी सिंह को भगवान् मानती है लेकिन ये पीढ़ी पुरे भारत का सच नहीं है, वर्ना मिल्खा सिंह जैसी फिल्म बनाने की हिम्मत कोई नहीं करता.