Monday 23 March 2015

वैदेही व्यथा द्रौपदी कथा

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1 comment:

  1. महाभारत कथा की भावना टीवी सीरियल देख के समझ नहीं आयेगी.
    रामायण की भी. रामायण की मुख्य कथा वाल्मीकि ने लिखी थी. लेकिन उसके बाद के वर्षों में कई ब्राह्मणों ने बार बार अपने हिसाब से उसमे बदलाव किये. आज जो रामायण का स्वरुप हमारे पास है वो उसके मूूल स्वरुप से बहुत ज्यादा विकृत स्वरुप है. मौर्य-काल में एक ब्राह्मण ने रामायण में एक अध्याय जोड़ा, जिसकी कहानी के मुताबिक- "एक शूद्र के द्वारा यज्ञ किये जाने पे राम ने उसे मृत्यु दंड दे दिया"
    मुग़ल-काल के एक ब्राह्मण तुलसी दास ने तो रामचरित-मानस नाम की किताब में राम के चरित्र का बेहद निम्न स्तरीय मानसिकता के साथ वर्णन कर दिया।

    स्त्रियों को अपना दास बनाये रखना , दलितों को दबा कुचला बनाये रखना, स्वयं को ईश्वर का एजेंट बनाये रखना और मुफ्त की दान दक्षिणा खाते रहना, बस इस सोच को समाज पे थोपने के लिए ब्राह्मणों ने महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथो का सहारा लिया।


    कुछ दिनों पहले निर्भया काण्ड पे एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ हुयी, उसमें मुख्य आरोपी मुकेश सिंह का इंटरव्यू दिखाया गया. इस बात पे संसद वालों ने खूब हंगामा किया. लेकिन मुकेश सिंह ने ऐसा क्या बोल दिया जिस पे इतना हंगामा हुआ? गीताप्रेस गोरखपुर की किसी दूकान में जा के कोई "आदर्श स्त्री के नियम" जैसी कोई भी किताब उठा लीजिये, उस किताब में वही सब लिखा है जो मुकेश सिंह ने उस इंटरव्यू में बोला।

    "शूद्र पशु और नारी, प्रताडन के अधिकारी" ये सोच राम की नहीं, बल्कि तुलसी दास की है.
    उसके जैसे अनेक ब्राह्मण विद्वानों ने अपनी संकुचित कुंठित मानसिकता को 'धर्म' का नाम दे कर समाज पे लाद दिया।

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