Sunday 20 January 2013

खोदा पहाड़ निकला चूहा

Clcik here to read this post.

3 comments:

  1. जब किसी पेड़ की पत्तियाँ हमें मुरझाई हुयी दिखाई दें तो हम इसका क्या मतलब निकालेंगे? समस्या पत्तियों में है या फिर जड़ों में है?

    किसी भी आज़ाद देश की आर्थिक और सामाजिक स्तिथि क्या है ये इस बात पे निर्भर करता है कि वहां की आम जनता की सोच क्या है. जैसी सोच अधिकतर लोगों की होती है..राष्ट्र की स्तिथि भी वैसी ही होती है चाहे किसी पार्टी की सरकार आये या जाए.

    इसलिए समस्या का समाधान हमें कभी भी शीर्ष पे नहीं मिलेगा, समस्या का समाधान सिर्फ एक है.. छोटे छोटे बच्चे.
    छोटे बच्चों का दिल और दिमाग कोरे कागज़ की तरह होता, और उसी कोरे कागज़ पे देश की तकदीर लिखी जाती है.
    उसी कोरे कागज़ पे लिख कर हम उन्हें 'ईश्वर के लिए आत्मबलिदान करने वाले जेहादी' भी बना सकते हैं, या फिर 'खुद के लिए दूसरों का बलिदान करने वाले स्वार्थी' भी बना सकते हैं

    आज हमारे स्कूलों में आने वाले भारत का भविष्य लिखा जा रहा है, हम वहां जो भी लिखेंगे , अगले २५ साल बाद वही हमारे भारत की स्तिथि होगी.
    इसलिए हमें शपथ लेनी चाहिए कि अब हम किसी पे दोषारोपण नहीं करेंगे, किसी पे ऊँगली नहीं उठाएंगे. अगर दुनिया बुरी है तो इसमें हमने बुराई खोज के कौनसा अच्छा काम कर लिया. हम सिर्फ उम्मीद की किरणें खोजेंगे और उनकी प्रशंशा करेंगे.

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  2. I agree with you but politics has the same importance as the children have. Even I would like to say that politics can better decide future of country as compared to children coz children don't have power.

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  3. तमिलनाडु राज्य के छोटे से गाँव रामेश्वरम में जब एक बच्चे को अच्छी शिक्षा मिली, तब उस अकेले बालक ने, इस बिखरे हुए देश को महाशक्ति बना दिया.
    उन्हें किसी ने कभी कोई राजनैतिक दोषारोपण उलझा हुआ नहीं देखा , क्योंकि शायद उन्हें ये अच्छी तरह से पता है की देश उन्नति का रास्ता राजनैतिक बहसबाजियों की उलझनों से परे, यथार्थ के धरातल से निकलता है.
    उनकी उदार सकारात्मक सोच में युवा भारत का अदम्य साहस छुपा हुआ है लेकिन ये बात हमारी संकीर्ण मानसिकता में नहीं घुस सकती.
    क्योंकि हम झुंझलाए हुए लोग सीधी सी बात करते हैं:
    सूरत बदलने के लिए कुछ करें या न करें,
    हंगामा खड़ा होना चाहिए

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